नेपाल के जलविधुत परियोजना पर भारत-चीन आमने सामने

भारत-नेपाल जल विवाद

चीन की भू-राजनीतिक खेल में नेपाल बुरी तरह से फँसता नजर आ रहा है, के. पी. शर्मा ओली की महत्वाकांक्षा ने नेपाल की विदेश नीति पर गहरा आघात किया है. वर्तमान में नेपाल के भविष्य को चीन निर्धारित कर रहा है, चीन मत्स्य नीति को अपनाते हुए नेपाल को अपना चारा बना रहा है, इसलिए नेपाल को समय रहते संभल जाने की जरुरत है और निस्वार्थ पड़ोसी देश भारत का साथ देना चाहिए. नेपाल, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनैतिक और आर्थिक सहयोग में भारत के काफी करीब है. नेपाल, जल संसाधन और जलविधुत परियोजना के धनी देश है यदि भारत और नेपाल आपसी सहयोग से कार्य करता है तो नेपाल की स्थिति में आशातीत सुधार हो सकता है और भारत की अतृप्ति उर्जा अर्थव्यवस्था में तेजी ला सकता है जिससे नेपाल के आर्थिक विकास में बढ़ोतरी होगा. फरवरी, 1996 में नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने भारत की यात्रा की जिसमें महाकाली नदी के पानी और उसपर स्थापित जलविधुत परियोजना के बँटवारे को लेकर भारत और नेपाल में समझौता हुआ, इसके तहत 2000 मेगावाट जलविधुत परियोजना के उत्पादन पर हस्ताक्षर हुआ जिससे नेपाल को 05 किलोवाट बिजली और 150 क्यूसेक पानी निशुल्क प्रदान करेगा. नेपाल के जलविधुत परियोजना से भारत की बिजली संकट को दूर किया जा सकता है इसलिए नेपाल भारत के लिए महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है, जलविधुत परियोजना के विकास से भारत में आने वाली बाढ़ को भी रोका जा सकता है, नेपाल से कोसी, कमला और लालबकेया नदी बिहार आती है जिससे हर साल बाढ़ के कारण भारी तबाही होती है, इन नदियों के कमजोर तटबंधों को बिहार सरकार मरम्मत करती है, परन्तु इस बार नेपाल सरकार तटबंधों को मरम्मत करने पर बिहार सरकार को अनुमति नहीं दे रहा है. भारत और नेपाल के बीच उभरे कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधरा विवाद से नुकसान भारत को हो रहा है क्योंकि सामरिक और आर्थिक रूप से नेपाल भारत के लिए महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है, भारत, नेपाल के विकास में हमेशा आगे रहा है यही वजह है की शुरुआत में भारत ने नेपाल में त्रिसुली जलविधुत परियोजना (18 मेगावाट), देविघाट जलविधुत परियोजना (14.1 मेगावाट), गण्डक परियोजना (15 मेगावाट) तथा सुरजपुरा-कोसी परियोजना (20 मेगावाट) स्थापित किया था तथा चीन ने सुंकोशी-1 जलविधुत परियोजना (10 मेगावाट) स्थापित किया था, नेपाल की सबसे बड़ी परियोजना काली गण्डकी परियोजना है जो 48 मेगावाट की तीन इकाई है जिससे 144 मेगावाट बिजली उत्पादन होता है.

नेपाल की ऊर्जा पर चीन की नजर

भारत के साथ चीन की सुरक्षा नीति में तिब्बत, भूटान, नेपाल, सिक्किम, लद्धाख और नेफा प्रथम स्थान रखता है इसलिए चीन ने नेपाल को भारत के साथ शक्ति संतुलन की प्रयोगशाला बना रहा है. नेपाल, भारत और चीन दोनों देशों के लिए आर्थिक और सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है, नेपाल अपनी स्थिति का भरपूर फायदा उठाने के लिए भारत और चीन दोनों देशों के साथ संबंधों में उतार-चढ़ाव करते रहता है. ग़ौरतलब है की नेपाल की इस नीति ने दक्षिण एशिया में उथल-पुथल मचा के रखा है जिसका ख़ामियाज़ा नेपाल को खुद उठाना पड़ रहा हैं. एक तरफ चीन अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए दक्षिण एशिया में अपना पाँव पसार रहा है वहीँ भारत चीन की इस नीति में अप्रत्यक्ष रूप से साथ दे रहा है, सालों से चीन की नजर नेपाल की जलविधुत परियोजना पर था ताकि वह चीन की ऊर्जा ज़रूरतों को नेपाल से प्राप्त कर सके और भारत को नेपाल से दूर रख सके, चीन अपनी इस कूटनीति में सफल होता जा रहा है और भारत, नेपाल के साथ सीमा विवाद में उलझ कर रह गया है, चीन की मदद से नेपाल ने 2019 में 60 मेगावाट की अपर त्रिशूल 3ए जलविधुत परियोजना पर उत्पादन शुरू कर दिया है और अब चीन 750 मेगावाट वाले सेती जलविधुत परियोजना पर काफी उत्साहित है इस परियोजना के निर्माण पर चीन और नेपाल के बीच कई वार्ता हो चुका है लेकिन अभी तक इस परियोजना पर अंतिम निर्णय नहीं हुआ है, भारत को सेती परियोजना के विकास के लिए नेपाल का सहयोग करने की जरुरत है ताकि दोनों देशों के बीच विश्वास निर्माण बहाल हो सके और चीन को नेपाल से दूर रख सके. नेपाल के जलविधुत परियोजना पर बांग्लादेश भी उत्साहित रहता है यही कारण है चीन की नजर नेपाल की बिजली परियोजना पर है ताकि दक्षिण एशिया में चीन अपनी पैठ बना सके. भारत और चीन में जलविधुत परियोजना की क्षमता हिमालयन देशों की तुलना में कम है दोनों देशों को बिजली के लिए तापीय ऊर्जा पर निर्भर रहना पड़ता है जबकि तापीय ऊर्जा जलविधुत परियोजना की तुलना में अधिक महँगा है. चीन अपनी बिजली के ज़रूरतों को नेपाल तथा भूटान से पूरा करना चाहता है, भूटान और भारत के बीच मधुर संबंधों के कारण चीन भूटान पर अपनी पकड़ मजबूत नहीं कर पाता है इसलिए अब वह नेपाल की ओर अपना रुख किया है, इसलिए भारत को अपनी कूटनीतिक चाल से चीन को नेपाल में भी बेनकाब करने की जरुरत है ताकि चीन दक्षिण एशिया में पकड़ मजबूत नहीं बना सके.

नेपाल में जलविधुत परियोजना की संभावनाएं

ऊर्जा की अपार संभावनाओं से परिपूर्ण देश नेपाल राजनीतिक विवादों में उलझ कर आर्थिक विकास में गतिरोध उत्पन्न कर रहा है, जल संसाधन और जलविधुत परियोजना में धनी होने के बावजूद भी प्रकृति प्रदत पनबिजली परियोजना का लाभ नहीं उठा पा रहा है. नेपाल में लगभग 84000 मेगावाट जलविधुत परियोजना की क्षमता है जिसमें से वर्तमान में 25,622 मेगावाट उत्पादन हो रहा है, शेष 58,378 मेगावाट उत्पादन होना बाकी है. वर्तमान में नेपाल में लगभग 30 जलविधुत परियोजना से उत्पादन हो रहा है तथा लगभग 25 जलविधुत परियोजना पर कार्य आरम्भ है जिसे 2030 तक पूरा कर लिया जायेगा. भारत और चीन की बढ़ती ऊर्जा जरुरत को नेपाल पूर्ण कर सकता है परन्तु चीन के साथ सम्बन्ध रखने के कारण नेपाल की विदेश नीति दक्षिण एशिया में नकारात्मक रूप से उभरा है इसलिए भारत के साथ लगातार गतिरोध उत्पन्न हो रहा है क्योंकि चीन साम्राज्यवादी नीति के पक्षधर है और नेपाल को भी उसी राह पर चलने पर विवश कर रहा है, लगभग सभी देशों के साथ चीन का सीमा विवाद है इसलिए नेपाल जैसे छोटे देश के लिए चीन के साथ सम्बन्ध बनाना सामरिक तथा क्षेत्रीय अखंडता के लिए सही नहीं होगा. भारत लोकतंत्र का पक्षधर है इसलिए युद्ध और विवादों का पक्षधर नहीं है यही कारण है की नेपाल के क्षेत्रीय अखंडता को भारत सम्मान करता है. भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद होने के बावजूद भी भारत, नेपाल के साथ मधुर सम्बन्ध बनाने के लिए अग्रसर रहता है.

भारत ने पूर्वी नेपाल के सनखुवासभा जिले में अरुण नदी पर 5723.72 करोड़ लागत की अरुण-3 जल विधुत परियोजना की स्वीकृति फरवरी 2017 को दे दिया, इस बहुउद्देशीय परियोजना में 4 इकाई से 225 मेगावाट करके कुल 900 मेगावाट बिजली उत्पादन का प्रस्ताव रखा गया है. उत्तराखंड में भारत और नेपाल सीमा पर काली नदी पर 6720 मेगावाट के दो डैम बनाये जायेंगे. पहला, पंचेस्वर डैम 6480 मेगावाट की तथा दूसरा, रुपलिगाड डैम जो 240 मेगावाट की होगी. यह बहूद्धेशीय बिजली परियोजना 2026 तक पूरा करने का प्रस्ताव पारित हुआ, यह परियोजना भारत और नेपाल की सामूहिक परियोजना होगी जिसमें भारत का शेयर अधिक होगा.

निष्कर्ष

भारत और नेपाल के बीच जल विधुत परियोजना के विकास से दोनों देशों को फायदा है एक तरफ जहाँ भारत के उत्तर भारत क्षेत्र को बिजली की समस्या से निदान मिलेगा, वहीँ बिहार को बाढ़ प्रभावित क्षेत्र से निज़ात मिल जायेगा क्योंकि भारत कोसी, कमला, लालबकेया और इसकी सहायक नदियों के जल का आंकड़ा सीधे प्राप्त कर पायेगा. नेपाल के साथ सम्बन्ध बेहतर बनाने से भारत को बाढ़ और बिजली दोनों समस्या से निज़ात मिल सकता है, अल्पविकसित देश नेपाल को आर्थिक सहायता चाहिए जो उसे जलविधुत परियोजना से प्राप्त होगा क्योंकि नेपाल के पास 84000 मेगावाट जलविधुत क्षमता है जिसका विकास नेपाल स्वयं नहीं कर सकता है, इसके लिए नेपाल को भारत या चीन का सहारा लेना पड़ेगा. भारत से अलग नेपाल, चीन की मदद से जलविधुत परियोजना का विकास तो कर लेगा, लेकिन बिजली के आपूर्ति के लिए उसे भारत की शरण में आना पड़ेगा क्योंकि भारत में बिजली की जरुरत अधिक है और नेपाल के साथ सम्बन्ध भी मधुर रहता है (कुछ विवादों को छोड़कर). चीन की बढ़ती बिजली की मांग को नेपाल पूरा कर सकता है लेकिन उसके लिए नेपाल को चीन की ‘डेब्ट ट्रैप पॉलिसी’ में फँसना होगा, नेपाल जैसे छोटे देश के लिए चीन का साथ कई मामलों में दोषपूर्ण होगा. भारत और नेपाल को आर्थिक सहयोग की ओर कार्य करने की जरुरत है, आर्थिक सम्बन्ध भारत और नेपाल के रिश्तों में सुधार ला सकता है जिसका आधार जलविधुत परियोजना होगा इसलिए भारत को इस जलनीति तथा जलविधुत परियोजना की राजनीति का सहारा लेना चाहिए.

पवन कुमार दास

पवन कुमार दास द कूटनीति में रिसर्च इंटर्न है! पवन झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध विभाग में एक रिसर्च स्कॉलर भी है | ईमेल - kpawan124@gmail.com

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *