तीस्ता नदी जल विवाद के संदर्भ में भारत-बांग्लादेश सम्बन्ध
भारत और बांग्लादेश की रिश्तों की पटकथा तीस्ता नदी जल विवाद पर लिखी जा रही है, अगस्त 1971 में पाकिस्तान से विभाजित होकर बांग्लादेश का निर्माण हुआ था, बांग्लादेश को मान्यता देने वाला पहला देश भारत था तथा भारत के साथ पहला राजनयिक सम्बन्ध भी स्थापित हुआ था. दोनों देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सम्बन्धों में प्रगाढ़ता 1971 से ही बना हुआ है तथा दोनों देशों के बीच व्यापार भी तेजी से बढ़ रहा है. बांग्लादेश के साथ भारत के असम, त्रिपुरा, मेघालय और पश्चिम बंगाल 4096 किलोमीटर सीमा साझा करता है जिसमे 1116 किलोमीटर सीमा नदियों से लगता है, दोनों देशों के बीच पशु तस्करी, घुसपैठ तथा आतंकवाद मुख्य समस्या है, इनसे लगे हुए सीमा को ‘कैटल कॉरिडोर’ के नाम से जाना जाता है. भारत और बांग्लादेश के बीच 54 नदियाँ साझा रूप से बहती है इन नदियों से साझा लाभ प्राप्त करने के लिए दोनों देशों के बीच 1972 में ‘सयुंक्त नदी आयोग (जेआरसी)’ का गठन हुआ था, परन्तु तीस्ता नदी जल विवाद और फ़रक्का बैराज पर सामान समझौता नहीं हो पाया है.
तीस्ता नदी के ऊपरी हिस्सा होने के कारण भारत इसपर दावेदारी दिखाता है क्योंकि भारत की बढ़ती आबादी के लिए जल की पर्याप्त मात्रा आवश्यक है तथा पश्चिम बंगाल के उतरी क्षेत्र के किसानों के लिए तीस्ता नदी जल सिंचाई और पेयजल के लिए आवश्यक है तथा भारत के पश्चिम बंगाल और सिक्किम में जलविधुत परियोजना के विकास के लिए तीस्ता नदी आवश्यक है. तीस्ता जल विवाद पर बांग्लादेश का आरोप है की भारत आवश्यकता के समय जल पर्याप्त मात्रा में बांग्लादेश को नहीं देता है जिसके कारण गर्मी के मौसम में बांग्लादेश के उतरी क्षेत्र के किसान सूखे से प्रभावित रहता है तथा मानसून के समय में पानी को रोकने के बजाय अधिक मात्रा में छोड़ देता है जिससे बांग्लादेश में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. वर्तमान में घटते जल स्तर के कारण भारत और बांग्लादेश दोनों सूखे से प्रभावित है इसलिए तीस्ता जल विवाद को सुलझाना भारत के लिए अति आवश्यक है तभी पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्धों में मधुरता आएगी.
बांग्लादेश के साथ भारत की जल नीति
भारत और बांग्लादेश के बीच गंगा नदी जल बँटवारे पर 12 दिसम्बर, 1996 को 30 वर्षों तक के लिए संधि पर हस्ताक्षर हुआ है जिसमें 50 – 50 प्रतिशत जल उपयोग करने पर सहमति हुआ है तथा छः अन्य नदियों यथा मानू, मुहरी, कोवई, गुमती, जालधका और तोरसा के साथ – साथ तीस्ता और फेनी नदियों के जल बँटवारा पर भारत सहमति जाहिर कर चुका है. बांग्लादेश के साथ भारत जल सहयोग की और अग्रसर हो रहा है यही कारण है की मानसून के मौसम में भारत ने गंगा, तीस्ता, ब्रह्मपुत्र तथा बराक जैसी महत्वपूर्ण नदियों के जल के आंकड़ों को साझा करने का सफल प्रयास किया है जिससे बांग्लादेश को बाढ़ के पूर्वानुमान से अवगत करा सके. भारत और बांग्लादेश के संबंधों में पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर भारत का विशेष योगदान रहा है, पड़ोसी देशों में बांग्लादेश और भूटान ही है जिसके साथ कई वर्षों से कोई विवाद उभरकर सामने नहीं आया है इसलिए पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से राष्ट्रहित की बात करते हुए तीस्ता जल विवाद को जल्द सुलझाना होगा, क्योंकि भारत और चीन के बीच ब्रह्मपुत्र नदी जल विवाद को सुलझाने के लिए बांग्लादेश को साथ रखना आवश्यक है क्योंकि ब्रह्मपुत्र नदी की जल पूर्वोत्तर भारत के साथ-साथ बांग्लादेश के लिए भी फ़ायदेमंद है इसलिए तीस्ता जल समझौता, ब्रह्मपुत्र जल विवाद सुलझाने का आधारशिला बनेगा जिससे भारत को अधिक फायदा होगा क्योंकि पूर्वोत्तर भारत की जीवन रेखा ब्रह्मपुत्र नदी है जिसपर चीन की गिद्ध नजर बना हुआ है जिसे सुलझाने के लिए भारत को बांग्लादेश का समर्थन प्राप्त करना जरूरी है.
भारत और बांग्लादेश के बीच फ़रक्का बैराज 1974 में बनाया गया था जो 42 किलोमीटर गंगा की नहर है जिसे हुगली नदी की ओर मोड़ा गया है ताकि हुगली बंदरगाह की जल की मात्रा को बढ़ाया जा सके, इसपर दोनों देशों के बीच विवाद था जो 1996 तक कुछ बुनियादी मुद्दों के अलावा सभी विवाद लगभग सुलझा लिया गया है. भारत की ओर से बांग्लादेश को 2600 मेगावाट की बिजली वितरण किया जा रहा है जिसकी आधारशिला तीस्ता और उसकी सहायक नदियाँ है, सिक्किम में भारत के जलविधुत परियोजना की विकास के लिए तीस्ता और उसकी सहायक नदियों का जल आवश्यक है, इसलिए नदी जल विवाद गहराता जा रहा है परन्तु भारत को दक्षिण एशिया में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए पड़ोसियों के साथ जल विवाद सुलझाना होगा. भारत और बांग्लादेश के रिश्तों पर चीन की आतंकित नजर हमेशा रहा है. चीन, तीस्ता नदी जल प्रबंधन के लिए बांग्लादेश को 7500 करोड़ रूपये (एक अरब डॉलर) देने की घोषणा किया है क्योंकि भारत ने बांग्लादेश को तीस्ता के विकास के लिए रुपये देने से इंकार कर दिया था, चीन इसी परिस्थिति के इंतजार में था जिसे भारत ने खुद चीन को दिया है, चीन द्वारा बांग्लादेश में नदी जल प्रबंधन में यह पहला निवेश होगा. वर्तमान में भारत को पड़ोसियों के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के लिए जल नीति की ओर विशेष ध्यान देने की जरुरत है तभी भारत की स्थिति दक्षिण एशिया में मजबूत होगा.
तीस्ता जल विवाद
हिमालय के करीब उतरी सिक्किम के सो-ल्हामों झील से उत्पन्न तीस्ता नदी की लम्बाई लगभग 413 किलोमीटर है जो सिक्किम में 150 किलोमीटर, पश्चिम बंगाल में 142 किलोमीटर तथा बांग्लादेश में 120 किलोमीटर बहते हुए बांग्लादेश के चिलमारी में ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती है. 1983 में तीस्ता नदी जल को लेकर भारत और बांग्लादेश के बीच तदर्थ जल समझौता हुआ था जिसमे प्रावधान किया गया था की 36 प्रतिशत जल का उपयोग बांग्लादेश करेगा तथा 39 प्रतिशत जल का उपयोग भारत करेगा, शेष 25 प्रतिशत जल भविष्य में होने वाले जरुरत के अनुसार आरक्षित रखा गया था. तीस्ता नदी की सहायक नदियाँ बारिश पर निर्भर रहता है यही कारण है की ग्रीष्मकालीन में तीस्ता के जल में उतार-चढ़ाव होता है, ऐसे में पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में जल की जरुरत बढ़ जाती है क्योंकि तीस्ता जल पर सिक्किम के 2 फीसदी, पश्चिम बंगाल के 25 फीसदी और बांग्लादेश के 20 फीसदी जनता कृषि, सिंचाई और पेयजल पर निर्भर है. भारत के गोजलदोबा में बने तीस्ता नदी बैराज बांग्लादेश की ओर जाने वाले जल के बहाव को नियंत्रित करता है जिसके कारण बांग्लादेश के लालमोनिर्हत जिले में तीस्ता नदी पर दलाई बैराज में पानी की कमी हो जाती है, जिससे शुष्क मौसम में जल प्रवाह की कमी के कारण दलाई बैराज गैर-कार्यात्मक हो जाता है जिसके कारण बांग्लादेश के किसानों को सूखे से प्रभावित होना पड़ता है. बांग्लादेश के उतरी क्षेत्र के चावल, पटसन और चाय की खेती के लिए तीस्ता का जल अति आवश्यक है, पश्चिम बंगाल सरकार का कहना है की तीस्ता नदी जल उनके किसानों की जीवन रेखा है इसलिए पश्चिम बंगाल तीस्ता पर केंद्र की नीति से सहमत नहीं रहता है तथा बांग्लादेश को चावल की खेती के लिए जल की अधिकांश मात्रा की जरूरत होती है. भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता जल विवाद में तुल पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बनने के बाद से बढ़ा है क्योंकि तीस्ता नदी जल विवाद को लेकर ममता बनर्जी केंद्र पर हावी रहा है इससे पहले नवंबर 2000 तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु थे उसके बाद ग्यारह साल तक बुद्धदेव भट्टाचार्य रहे, लेकिन कभी ये दोनों तीस्ता को लेकर केंद्र पर हावी नहीं रहे. 2011 में भारत के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और बांग्लादेश के शेख हसीना तीस्ता जल समझौते के करीब था लेकिन ममता बनर्जी के ‘वीटो’ के फलस्वरूप समझौता नहीं हो सका, हालाँकि अनुच्छेद 253 में प्रावधान है की भारत सरकार राज्य की सहमति लिए बिना किसी देश से समझौता कर सकता है परन्तु राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण समझौता नहीं हो सका. 2013 में तत्कालीन यूपीए सरकार और बांग्लादेश के शेख हसीना के बीच तीस्ता जल को लेकर दोनों देशों के बीच अल्पकालीन समझौता हुआ जिसमें अगले 18 साल तक 50 – 50 प्रतिशत जल उपयोग करने पर हस्ताक्षर हुआ परन्तु ममता बनर्जी इस समझौते के पक्ष में नहीं है, उनका मानना है की पश्चिम बंगाल के उतरी क्षेत्र के लिए जल की आवश्यकता अधिक है इसलिए सामान जल वितरण संभव नहीं है, ऐसा लगता है की राज्य राजनीति के लिए ममता बनर्जी केंद्र की नीति पर हावी है, कुछ वर्षों से देखा गया है की राज्य सरकार का विदेश नीति में दखलंदाज़ी अधिक हो रहा है, परन्तु भारत ‘नेबरहूड फ़र्स्ट नीति’ की ओर अग्रसर है इसलिए बांग्लादेश के साथ सम्बन्ध बेहतर है परन्तु तीस्ता जल विवाद के कारण संबंधों में अलगाव नहीं होना चाहिए इसलिए द्विपक्षीय विवादों को आपसी सहमति से सुलझाने की आवश्यकता है.