अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रवाद के बदलते आयाम

अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रवाद

द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रवाद का प्रभाव बढ़ने लगा, राजनीतिक सहयोग और आर्थिक सहयोग ने क्षेत्रवाद की विचारधारा को नई दिशा प्रदान किया, फलस्वरूप पड़ोसी देश या एक समान विचारधारा के देश एक मंच साझा करने लगे. क्षेत्रवाद के रूप में पहला संगठन यूरोपियन यूनियन के रूप में आया जिसने यूरोप के सभी देशों को एक मंच पर लाया और अपने राज्यों के विकास के लिए साझा प्रयास किया. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आर्थिक, सामाजिक, और प्रतिरक्षा सम्बन्धी समस्याओं के निवारण हेतु अनेक क्षेत्रीय संगठनों का निर्माण हुआ. अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रवाद परस्पर निर्भरता के परिणाम स्वरूप अस्तित्व में आया है क्योंकि सभी राज्य मिलकर एक साधारण लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अग्रसर होने लगा.

1945 में अरब लीग की स्थापना हुआ, यह पश्चिमी देशों का संगठन है जो यूरोपीय उपनिवेशवाद की समाप्ति, अरब देश की संप्रभुता की रक्षा, सदस्य राष्ट्रों के बीच आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और वितीय सहयोग के लिए बनाया गया है. अरब लीग ने 1967 और 1973 में इजरायल के विरुद्ध युद्ध में भाग लिया था, 1990 में कुवैत को स्वतंत्र कराने में अरब लीग ने अमेरिका के नेतृत्व में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया था. 1963 में 51 देशों के अफ़्रीकी एकता संगठन का निर्माण का मुख्य लक्ष्य था सदस्य देशों के बीच मधुर सम्बन्ध रखना, प्रादेशिक अखंडता और राजनीतिक स्वतंत्रता को बनाये रखना तथा आर्थिक, सामाजिक और बौद्धिक प्रगति के लिए एक दूसरे का मदद करना. 1949 में नाटो का निर्माण हुआ जिसका लक्ष्य था सोवियत संघ के द्वारा प्रसारित साम्यवाद को रोकना, यूरोपीय राष्ट्रों को सुरक्षा प्रदान करना तथा सैन्य और आर्थिक विकास करना तथा अमेरिकी नागरिकों को युद्ध के लिए तैयार करना. दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का संगठन (आसियान) की स्थापना अगस्त 1967 में इस लक्ष्य से किया गया था की सदस्य राष्ट्रों में आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देना, क्षेत्रीय शांति तथा सुरक्षा प्रदान करना, अध्ययन तथा शोध को प्रोत्साहन देना. दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय संगठन (सार्क) की स्थापना 7-8 दिसम्बर, 1985 को ढाका में हुआ था जिसका मुख्य लक्ष्य था सदस्य देशों के बीच  आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी, और वैज्ञानिक क्षेत्र में विकास और सक्रिय सहयोग करना, सभी देशों को सामूहिक आत्मनिर्भर बनाना, दक्षिण एशिया के देशों के कल्याण और जीवन स्तर में सुधार करना और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सामान्य हितों पर सहयोग करना. पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) का स्थापना 1960 में किया गया था जिसके तहत अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में तेल के आयात और निर्यात पर नियत्रंण करने के लिए ओपेक का निर्माण किया गया था, इस तरह 1945 के लक्ष्य प्राप्ति और विकास के लिए अनेक क्षेत्रीय संगठनों का निर्माण हुआ जिससे अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रवाद को बढ़ावा मिला. द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत क्षेत्रीय संगठनों ने आर्थिक और राजनीतिक सहयोग के दिशा में आशातीत सफलता अर्जित किया इसलिए अनेक संगठनों का निर्माण किया गया, यूरोपीय यूनियन और आसियान जैसे संगठन ने क्षेत्रीय सहयोग के दिशा में सफलता प्राप्त किया तो सार्क, ब्रिक्स जैसे संगठन सदस्य देशों के बीच सहयोग के लिए संघर्षरत है.

क्षेत्रवाद का बदलता स्वरूप

अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में कोई भी देश पूर्णकालिक दोस्त या दुश्मन नहीं होता है आज जो देश दोस्त है वह कभी भी दुश्मन की श्रेणी में आ सकता है यही कारण है एक साधारण लक्ष्य की पूर्ति के लिए क्षेत्रीय संगठन का निर्माण तो कर लेता है परन्तु एक साथ सहयोग नहीं कर पाता है क्योंकि सभी देशों का लक्ष्य अलग-अलग होता है. दक्षिण एशिया में सार्क की असफलता का मुख्य कारण ही है सदस्य देशों के बीच आपसी टकराव, सार्क देश आपसी विवादों को सुलझाने में निरंतर असफल रहा है. भारत, आर्थिक विकास के लिए ब्रिक्स या बिम्सटेक जैसे संगठनों में रूचि दिखाने लगा है, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्र नीति और शीत युद्ध से उभरे दोनों गुटों (साम्यवादी और पूंजीवादी) में शामिल न होने के लिए गुट निरपेक्ष आन्दोलन की शुरुआत किया था परन्तु गुट निरपेक्ष आन्दोलन भी अपने लक्ष्य साधने में असफल रहा, फलस्वरूप क्षेत्रीय संगठन अब राजनीतिक न होकर आर्थिक होने लगा, जैसे ब्रिक्स, QUAD (अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया का समूह), बिम्सटेक, संघाई सहयोग संगठन, इत्यादि. वर्तमान परिस्थिति में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति आर्थिक सहयोग की ओर अग्रसर हो रहा है. भारत, सामरिक रूप से एशिया में अपना स्वतंत्र नीति का पालन करते हुए हिन्द-प्रशांत क्षेत्र, दक्षिण एशिया, मध्य-पूर्व एशिया तथा दक्षिण चीन सागर में अपना प्रभुत्व विस्तार कर रहा है क्योंकि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र भारत को प्रकृति प्रदत आर्थिक क्षेत्र मिला है, जिसका फायदा भारत को भरपूर मिल रहा है. इंडो-पसिफ़िक इकोनॉमिक कॉरिडोर भारत के सर्वागीण विकास का धोतक है क्योंकि विश्व के उभरते अर्थव्यवस्था का मार्ग हिन्द-प्रशांत क्षेत्र है, भारत को इस क्षेत्र में और अधिक प्रभुत्व विस्तार करना पड़ेगा, क्योंकि इस क्षेत्र पर लगभग सभी विकसित देशों का नजर है. चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को संपूर्ण एशिया में विस्तार कर रहा है जिसके तहत चीन सभी देशों को अपने बाजार के रूप में जोड़ रहा है, चीन की इस नीति को भारत लम्बे समय से विरोध कर रहा है लेकिन सार्क की असफलता से भारत की बात को पड़ोसी देश अनसुना कर रहा है, इसलिए सार्क को मजबूत करना भारत का प्रथम लक्ष्य होना चाहिए. आसियान, एशिया का सफल क्षेत्रीय संगठन है जो अपने लक्ष्य की पूर्ति में सफल रहा है क्योंकि आसियान ने आर्थिक सहयोग की और अधिक ध्यान दिया है, परन्तु सार्क का राजनीतिक हितों की और ध्यान अधिक रहा है इसलिए सदस्य देश आपसी विवादों को सार्क के समक्ष रखने में असफल रहा है यही कारण है की आतंकवाद, गरीबी, बेरोज़गारी सार्क देशों के समक्ष चुनौती बनकर उभरा है.

तेल उत्पादक संगठन, ओपेक अपने लक्ष्य की पूर्ति में सफल रहा है लेकिन सऊदी अरब, इराक, कुवैत के बीच प्रतिस्पर्धा और अमेरिका के द्वारा लगाये गये आर्थिक प्रतिबंध के कारण यह संगठन के बीच विश्वास निर्माण बहाल नहीं हो सका है, और विश्व की ज्वलनशील मुद्दा तेल की राजनीति है जिसके कारण रूस और अमेरिका लगातार ओपेक देश से तेल की कटौती के लिए विवश कर रहा है, जिससे संगठन के समक्ष चुनौती उभरकर सामने आया है. क्षेत्रीय संगठन में क्षेत्रीय विवाद हावी रहा है, विवादों के समाधान के लिए बेहतर उपाय नहीं मिलने के कारण सदस्य देशों के बीच अलगाव की स्थिति हमेशा बना रहता है.

क्षेत्रीय संगठनों में विश्वास निर्माण बहाल करने की आवश्यकता

क्षेत्रीय संगठन किसी भी देश के विकास के लिए आवश्यक होता है क्योंकि क्षेत्रीय संगठन का निर्माण सदस्य देशों के बीच पनप रहे अलगाव को समाप्त करने के लिए बनाया जाता है, जिससे की अलगाव समाप्त करके एक साधारण लक्ष्य की प्राप्ति हो सके लेकिन सदस्य देशों के आपसी विवाद उनके विकास प्रक्रिया में बाधक पहुँचाता है. ईरान-पाकिस्तान-भारत गैस पाइपलाइन तथा तुर्कमेनिस्तान, अफग़ानिस्तान से होते हुए भारत आने वाली गैस पाइपलाइन जिसे TAPI परियोजना नाम दिया गया है, पाकिस्तान जानबूझकर इस परियोजना में अटकलें लगा रहा है क्योंकि चीन, पाकिस्तान का हितैषी बना बैठा है परन्तु इस परियोजना से सभी देशों को बराबर का फायदा होने वाला है, पाकिस्तान का इस परियोजना पर अटकलें लगाने से पाकिस्तान को ही नुकसान हो रहा है. 21 वीं सदी में क्षेत्रवाद के विचारधारा में बदलाव आ गया है, वर्तमान में सभी देश विकास के पथ पर चलना चाहता है लेकिन वह विकास उस देश से होकर जाये इस रूप में कार्य करता है. चीन जैसे आतंकित देश अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक जा सकता है इसलिए क्षेत्रीय संगठनों में विकसित देश या शक्तिशाली देशों का हस्तक्षेप होता रहता है. अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और क्षेत्रीय संगठनों के बीच वर्तमान में कार्ल मार्क्स का बुर्जुवा और सर्वहारा सिधान्त प्रभावी है, यही कारण है की क्षेत्रीय संगठन विफल हो रहा है.

क्षेत्रीय संगठनों की विफलता के कारण आर्थिक उपनिवेश के प्रचार-प्रसार को फायदा मिला है क्योंकि जब देश विकासशील होगा तो शक्तिशाली देशों के आर्थिक विकास पर निर्भर रहेगा, और उनके द्वारा बनाये गये सामानों का आयात करेगा, वर्तमान में चीन की नीति यही रहा है की किसी भी देश को विकसित न होने दिया जाये ताकि चीन के सामानों का बाजार बना रहे, इसलिए वह सार्क, बिम्सटेक जैसे क्षेत्रीय संगठनों के सदस्यों बीच अलगाव उत्पन्न करते रहता है. अमेरिका की भी नीति रहा है की अरब देशों के क्षेत्रीय संगठनों को विस्तार को रोका जाये जिससे तेल की राजनीति बरक़रार रहे, रूस भी अपने हितों की पूर्ति के लिए यूरोप और एशिया में अपना प्रभुत्व विस्तार के लिए क्षेत्रीय संगठनों के बीच हस्तक्षेप करता आ रहा है ताकि सैन्य सामानों का बाजार बना रहे. वर्तमान में अगर क्षेत्रीय संगठनों को मजबूत होना है तो सदस्य देशों के बीच विवादों को खुलकर रखना पड़ेगा और आपसी विवादों को द्विपक्षीय समझौतों के तहत सुलझाना होगा. क्षेत्रीय संगठनों की मज़बूती से न केवल उस क्षेत्र का बल्कि सदस्य देशों का भी सर्वांगीन विकास होगा.

पवन कुमार दास

शोध छात्र, राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध विभाग, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ़ झारखंड, राँची, झारखंड

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