भूटान में भारत की उर्जा सुरक्षा कूटनीति

भारत-भूटान सहयोग

एशिया के दो बड़े महाशक्ति भारत और चीन के बिच भूटान एक भू-आबद्ध देश है जो भारत और चीन के बिच “बफर स्टेट” की भूमिका में अवस्थित है यही कारण है की भूटान, भारत के लिए सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है. भारत – भूटान के बिच मैत्री और सहयोग संधि पर हस्ताक्षर अगस्त 1949 में हुआ था जिसे संशोधित फ़रवरी 2007 में किया गया. 1949 के ट्रिटी में यह प्रावधान था की भूटान जब भी किसी देश के साथ मैत्री या राजनयिक सम्बन्ध स्थापित करेगा तो उसे भारत को शामिल करना होगा तथा किसी भी देश के साथ विदेशी सम्बन्ध स्थापित करने से पहले भारत को सूचित करना होगा परन्तु 2007 में इसे संशोधित करके यह प्रावधान किया गया की अब भूटान उसी समझौते में भारत को शामिल करेगा जो सामरिक या सीधे तौर पर भारत से जुड़ा हो. भारत और भूटान के बिच व्यापार और ट्रांजिट समझौता, 1972 में हुआ था इसे अंतिम बार संशोधित नवंबर 2016 में किया गया था इसके तहत दोनों देशों के बिच मुक्त व्यापार व्यवस्था स्थापित हुआ था जिसके तहत दोनों देशों के बिच टैक्स फ्री व्यापार होता है, वर्तमान में भारत, भूटान का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है, जलविधुत परियोजना भूटान के सकल घरेलू उत्पाद में प्रथम स्थान रखता है. भारत और भूटान के रिश्तों को मज़बूती प्रदान करने के लिए जलविधुत परियोजना का विशेष स्थान है. भारत और भूटान के बिच राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध स्थापित है जो भारत और भूटान के रिश्तों को प्रगाढ़ बनाता है. भूटान अपने ग्रोस नेशनल हप्पिनेश के लिए जाने जाते हैं, भूटान शांतिपूर्ण देश है इसलिए वह चीन जैसे साम्राज्यवादी और आतंकित देश के साथ समझौता नहीं रखना चाहता है. भारत, भूटान के इस फैसले का स्वागत करता है और भूटान की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उठाता है. दक्षिण एशिया में भारत-भूटान सम्बन्ध नयी परिभाषा गढ़ रहा है. भूटान, भारत के साथ रिश्तों में मधुरता रखकर आर्थिक विकास में तेजी ला रहा है.

भूटान पर चीन की नजर

चीन के साथ सीमा विवाद भारत और भूटान दोनों देशों के साथ है, भूटान, चीन के साथ 470 किलोमीटर सीमा साझा करता है चीन, भूटान के डोकलाम को अपना हिस्सा मानता है यही कारण है की पिछले साल डोकलाम विवाद अपने चरम सीमा पर था जिसे भारत ने कूटनीतिक तौर पर सुलझाया था. विदित हो की चीन की विस्तारवादी नीति से दक्षिण एशिया के सभी देश चिंतित है. चीन, भूटान को दो तरह से देखता है प्रथम, भूटान के पास जलविधुत का भंडार है जो भूटान, भारत को बेचता है, भारत और चीन में बढ़ती जनसंख्या और आबादी के कारण बिजली की माँग भी बढ़ रही है इसलिए भूटान की जलविधुत उत्पादन पर चीन की नजर है, चीन का मंशा है की वह भूटान के जलविधुत परियोजना में निवेश करे. दूसरा, भारत की चुम्बी घाटी (भारत का चिकेन नेक) डोकलाम से नज़दीक है, चीन का डोकलाम में सड़क निर्माण करने का सीधा तात्पर्य यह है की वह डोकलाम में सैनिक अड्डा बनाकर चुम्बी घाटी को निशाना बनाये. चुम्बी घाटी ही शेष भारत को नार्थ ईस्ट से जोड़ता है इसलिए चीन की नजर डोकलाम पर है, चीन की कोशिश है की युद्ध के समय डोकलाम से चुम्बी घाटी को नियंत्रण में रखा जा सके. भूटान जलविधुत परियोजना पर बढ़ते अतिभार को कम करना चाहता है इसलिए वह टूरिज़्म को बढ़ावा दे रहा है, जलविधुत परियोजना के बाद टूरिज़्म भूटान के सकल घरेलू उत्पाद में दूसरा स्थान रखता है. भूटान के टूरिज़्म पर चीन की पैनी नजर है क्योंकि टूरिज़्म से भूटान के जनता और चीनी जनता के बिच सद्भाव बढ़ेगा जिससे रिश्तों में सुधार हो सकता है इसलिए भारत को भूटान के टूरिज़्म पर ध्यान देना होगा फ़िलहाल भारत को भूटान में चीन की उपस्थिति से कोई खतरा नहीं है लेकिन भविष्य को ध्यान में रखते हुए भूटान पर जलविधुत परियोजना के अतिभार को कम करने की जरूरत है ताकि दोनों देशों की विश्वसनीयता बना रहे.

भूटान में भारत की उर्जा सुरक्षा नीति

वर्तमान में भारत की जनसंख्या 130 करोड़ तक पहुँच गया है भारत की बढती उर्जा जरुरत को पूरा करने के लिए जरूरी है पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों में मधुरता रखी जाये क्योंकि पड़ोसी देश में उर्जा का भंडार है और भारत अपनी उर्जा जरुरत को पूरा कर सकता है. भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उर्जा आपूर्ति के लिए “एक्ट ईस्ट” तथा “नेबरहूड फ़र्स्ट पॉलिसी” के तहत भूटान में जलविधुत परियोजना पर विशेष ध्यान दिया है. भारत और भूटान के बिच उर्जा सुरक्षा की नीव साल 1967 में रखा था जब पश्चिम बंगाल में अवस्थित जालधका जलविधुत परियोजना से भूटान को बिजली आपूर्ति पर हस्ताक्षर हुआ था परन्तु परिस्थितियों में बदलाव आया और भारत-भूटान के बिच 1974 में चुखा जलविधुत परियोजना के विकास पर समझौता हुआ इसके तहत 336 मेगावाट बिजली उत्पादन करने का लक्ष्य रखा गया. भूटान के वांगचु नदी पर स्थित चुखा परियोजना 1988 से भूटान सरकार के पुर्णतः अधीन में है तथा भारत को बिजली आपूर्ति कर रहा है. चुखा परियोजना के विकास के लिए भारत ने 40 प्रतिशत ऋण 5 प्रतिशत ब्याज दर पर तथा 60 प्रतिशत अनुदान के तहत कुल 246 करोड़ दिया था जिसे भूटान सरकार ने 2007 तक चुका दिया है इस परियोजना से भारत को 99 साल तक बिजली आपूर्ति के लिए हस्ताक्षर हुआ है. प्रारम्भ में भारत और भूटान ने तीन जलविधुत परियोजना के विकास का नींव रखा था जिसमे चुखा जल विधुत परियोजना (336 मेगावाट), कुरिछु जलविधुत परियोजना (60 मेगावाट) तथा ताला जलविधुत परियोजना (1020 मेगावाट) से बिजली उत्पादन करने का लक्ष्य रखा था  वर्तमान में इन तीनों जलविधुत परियोजना से कुल 1416 मेगावाट बिजली उत्पादन किया जा रहा है. दूसरे चरण में भारत ने भूटान के साथ 2020 तक कुल 10,000 मेगावाट बिजली उत्पादन करने की लक्ष्य पर 2008 में दोनों देशों के बिच समझौता हुआ है जिसमे 2940 मेगावाट की तीन जलविधुत परियोजना पर विकास कार्य चल रहा है जो पुनातसांग्चू-1 जलविधुत परियोजना (1200 मेगावाट), पुनातसांग्चू-2 जलविधुत परियोजना (1020 मेगावाट) तथा मांगदेचू जलविधुत परियोजना (720 मेगावाट) है जिसे भारत सरकार ने 2017-18 में शुरू कर दिया है, मांगदेचू जलविधुत परियोजना को पूरा कर चूका है. शेष सात जल विधुत परियोजना में से 2120 मेगावाट बिजली उत्पादन का प्रस्ताव रखा गया है जिसमें खोलोंग्छु जलविधुत परियोजना (600 मेगावाट), बुनाखा परियोजना (180 मेगावाट), वांगचू परियोजना (570 मेगावाट) तथा चमकारचू परियोजना (770 मेगावाट) है. खोलोंग्छु जलविधुत परियोजना पर अभी हाल ही में जून 2020 में समझौता हुआ है इस मौके पर भूटान के विदेश मंत्री तांदी दोरजी ने कहा था की “भूटान और भारत के बिच पारस्परिक रूप से लाभकारी आर्थिक सहयोग का केंद्र बिंदु जलविधुत परियोजना है, जल विधुत परियोजना दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमारी अर्थव्यवस्था में गति प्रदान कर रहा है तथा उर्जा सुरक्षा में वृद्धि कर रहा है”. भूटान नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक का कहना है की “जलविधुत परियोजना भूटान को प्रकृति से मिला हुआ उपहार है जो भूटान के विकास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. जलविधुत परियोजना के विकास के लिए भारत, भूटान का साथ दे रहा है जिसे भूटान स्वागत करता है”.

भारत की बढ़ती आबादी के लिए उर्जा सुरक्षा की सख्त जरुरत है, भारत के पड़ोस में उर्जा का अथाह भंडार है. पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्धों को बेहतर करके उर्जा कूटनीति के तहत भारत अपनी उर्जा जरुरत को पूरा कर सकता है. भारत में बढ़ती बिजली की माँग को पूरा करने के लिए भूटान की बिजली की आवश्यकता है. भूटान के बिजली से बिहार, बंगाल, उत्तरप्रदेश, दिल्ली तथा अन्य राज्य लाभान्वित हो रहा है. जलविधुत परियोजना की उत्पादन लागत सौर उर्जा, पवन उर्जा तथा कोयला से कम है, जल विधुत परियोजना पर भारत को विशेष ध्यान देने की जरुरत है. जलविधुत परियोजना दोनों देशों के लिए हितकर है, परस्पर निर्भरता के कारण दोनों देशों के सम्बन्धों में भी मधुरता आएगी तथा भारत की उर्जा संकट भी कम होगा. दक्षिण एशिया के विकास के लिए भारत को उर्जा सुरक्षा कूटनीति पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.  

पवन कुमार दास

शोध छात्र, राजनीति तथा अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध विभाग, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ़ झारखण्ड, ब्राम्बे

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