भारत में गहराता जल संकट : एक समस्या

जल संकट की अहमियत

जल की कमी भारत को निश्चित ही एक बड़ी समस्या की और आगाह कर रहा है क्योंकि 130 करोड़ जनसंख्या के साथ भारत दूसरे स्थान पर है और जल की उपलब्धता निरंतर कम हो रहा है. शिमला, दिल्ली, राँची, लातूर जैसे शहर जल संकट से लड़ रहा है ऐसे में भारत को जल प्रबंधन पर समुचित विचार करना पड़ेगा. प्रकृति प्रदत पदार्थ पृथ्वी पर सीमित मात्रा में उपलब्ध है इसलिए लोगों को सोच समझकर और सीमित मात्रा में खर्च करना पड़ेगा नहीं तो आने वाली पीढ़ी को एक अंधकारमय जीवन देंगे. जल संकट से उबरने के लिए वर्षा जल संचयन को बेहतर बनाना होगा, लोगों को जल संचयन का उपाय बताना होगा तभी बारिश के पानी को समुद्र में बह जाने से रोक पाएंगे. जिस तरह जल संकट लगातार बढ़ रहा है ऐसे में जल को लेकर संघर्ष बरकरार रहेगा. नदी जल बँटवारे को लेकर भारत में निरंतर संघर्ष हो रहा है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी जल संघर्ष निरंतर बढ़ रहा है. उरी आतंकवादी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान सिंधु जल समझौते को लेकर भारत में समीक्षा शुरू हो गया, भारत के इस कदम से पाकिस्तान भयभीत होकर विश्व बैंक के दरवाज़े तक पहुँच गया, इससे यह प्रतीत होता है की भविष्य में पानी कूटनीतिक रूप से कितना अहमियत रखेगा. जल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सबसे महँगा पदार्थ बन रहा है. भू-जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है जिससे शुद्ध पेयजल की कमी लम्बे समय से बना हुआ है, भारत के प्राय: सभी बड़े शहर में शुद्ध पेयजल की कमी है, किसानों को सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल रहा है. भारत की कृषि व्यवस्था वर्षा जल पर निर्भर है और बारिश की कमी के कारण उत्पादन कम हो रह है जिसके कारण वस्तुओं की कीमत लगातार बढ़ रहा है और आम जनता को मंहगाई जैसे समस्या झेलना पड़ रहा है. जल की कमी को समाप्त करने के लिए तालाबों, नदियों, और नहरों में जल प्रबंधन को बेहतर बनाना होगा.

भारत की आन्तरिक जल व्यवस्था

“जल ही जीवन हैं” ये कहावत बचपन से पढ़ रहे हैं लेकिन जल की बर्बादी वर्तमान समय में मानव समाज अत्यधिक कर रहा है ऐसा लगता है जल संकट से आने वाली समस्या से मानव समाज अवगत नहीं हैं, क्योंकि जिस तरह से जल संकट दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है और मानव इस समस्या से निश्चिंत है, इस लिहाज से हम जल संकट को स्वीकार नहीं कर रहे हैं. भारत जैसे विकासशील देश में विकास की नीव ही जल पर है, मानव की ज़रूरतों ने विकास को बढ़ावा दिया और इसमें जल को प्रदूषित करने का कार्य शुरू हुआ, लिहाजा सभी नदियों का जल स्तर लगातार कम हो रहा है. गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों का जल स्तर लगातार कम हो रहा है तो प्रदूषित भी उतनी ही तेजी से हो रहा है. प्रदूषित नदी में यमुना नदी तो वर्ल्ड रिकॉर्ड के कगार पर है हालिया घटना पर नजर डालें तो महाराष्ट्र के लातूर, हिमाचल प्रदेश के शिमला, झारखंड के राँची जैसे शहर में जल संकट इस तरह से उभरकर सामने आया है की मानव जीवन का अस्तित्व ही संकट में आ गया है. प्रकृति का यह चेतावनी है की अगर समय रहते जल संकट जैसी विकट समस्या का हल नहीं निकाल पाए तो मानव जीवन पूरी तरह से समाप्त हो जायेगा. केपटाउन शहर में अचानक जल स्तर नीचे चले जाने से वहाँ जन-जीवन अचानक प्रभावित हो गया, कुछ इस तरह हिमाचल प्रदेश के शिमला में भी अचानक जल संकट से आम जनता में तंगी का हालत हो गया था, केपटाउन में जीवन जीना मुश्किल हो गया लगभग यही स्थिति सभी देशों का है. जल की उपलब्धता भारत में 1.4 प्रतिशत है तो वहीँ विश्व में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 3.671 क्यूसेक जल है, जो लगातार घट रहा है, वर्ष 2050 तक विश्व के सामने सबसे बड़ी समस्या शुद्ध जल की होगी. भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश (130 करोड़) वाले देश के लिए जल की उपलब्धता प्रचुर मात्रा में बहुत जरूरी है, नहीं तो जल संकट के कारण बहुत सी समस्या उभरकर सामने आएगी. भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है और कृषि के लिए जल बहुत जरूरी है, अगर कृषि प्रभावित होगा तो अर्थव्यवस्था में गिरावट आयेगी, जिससे महँगाई जैसी समस्या उभरकर सामने आयेगी और इस तरह के असामयिक घटना से उबरने के लिए भारत को हमेशा तत्पर रहना पड़ेगा, क्योंकि जिस तरह से जल स्तर की कमी हो रही है, जल संकट जैसी समस्या कभी भी भारत के सामने आ सकती है. भारत के सभी बड़े शहरों में शुद्ध पेयजल की समस्या है नई दिल्ली, मुम्बई, हैदराबाद, कोलकाता जैसे बड़े शहर बोतल के पानी पर ही निर्भर है, ऐसे में जल संकट को नजर अंदाज़ करना एक भयावह स्थिति को न्यौता देने के बराबर है इसलिए जल संकट पर गहराई से सोचने की जरुरत है तभी मानव जीवन को समाप्त होने से बचाया जा सकता है.

भारत की जल नीति

भारत जैसे विकासशील देश में लगातार विकास कार्य हो रहा है लगभग सभी कल-कारखाने का जल नदियों में ही छोड़ा जाता है जिससे नदियों में रासायनिक पदार्थों की मात्रा बढ़ रहा है इस तरह नदियों का जल प्रदूषित होने से मछली उत्पादन, कृषि, शुद्ध पेयजल जैसी समस्या उत्पन्न हो गया है तो पर्यावरण में भी इसकी उपस्थिति देखने को मिल रहा है. भारतीय कृषि वर्षा पर निर्भर है और औधोगिक विकास कार्य ने सरकार को इस तरह अँधा कर दिया है की जंगलों को पूरी तरह से नष्ट किया जा रहा है. पेड़-पौधे अब सीमित मात्रा में उपलब्ध है जिसके कारण बारिश निरंतर कम हो रहा है. बारिश की कमी कृषि को पूरी तरह से प्रभावित कर रहा है जिसके कारण पैदावार घट रहा है, किसानों को उपज का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है जिससे किसान लगातार आत्महत्या कर रहा है. नदियों पर बड़े-बड़े डैम बनाकर बहुउद्देशीय परियोजना का निर्माण किया जा रहा है, इससे सरकार और निजी कंम्पनियों को तो लाभ हो रहा है लेकिन किसानों का ज़मीन सुखा रह रहा है. भारतीय कृषि का प्रभावित होने के कारण ही महँगाई दिन-ब-दिन आसमान छू रहा है, बड़े-बड़े डैम के निर्माण से कई गाँव विस्थापित हो रहा है. शुद्ध पेयजल की कमी, कृषि की कमी के कारण गाँव के लोग शहर की और प्रस्थान कर रहे है जिससे शहर में असीमित जनसंख्या वृद्धि हो रहा है. शहर की जनसंख्या वृद्धि कई समस्याओं को जन्म दे रहा है, शहर की जनसंख्या वृद्धि से वस्तुओं की मात्रा में वृद्धि उस अनुपात में नहीं हो रहा है, जिसके कारण थोड़े से वस्तुओं में लोगों को काम चलाना पड़ रहा है जिससे ग़रीबों में कुपोषण की संख्या में लगातार वृद्धि हो रहा है इन सब समस्याओं का मुख्य कारण गाँव से लोगों को विस्थापित होना है. गाँवों को फिर से स्थापित करने के लिए कृषि को बढ़ावा देना पड़ेगा और कृषि उपज का उचित दाम भी देना पड़ेगा, किसानों को बाज़ार भी उपलब्ध करवाना पड़ेगा. जल संकट से किसानों को उबारने के लिए नहरों और तालाबों का निर्माण करवाना पड़ेगा, जिससे वर्षा जल संग्रह हो सके, अगर संभव हो तो छोटे-छोटे तालाबों का निर्माण वृहत स्तर पर करवाने की जरुरत है तभी वर्षा जल संग्रह हो सकता है और किसानों को सिंचाई लायक जल उपलब्ध होगा. सरकार को वाटर हार्वेस्टिंग व्यवस्था बनवाने के लिए लोगों को प्रेरित करना होगा और अगर जरुरत पड़े तो ग़रीबों को सहायता राशि भी देना पड़ेगा, तभी भू-जल स्तर को नीचे जाने से रोका जा सकता है. भारत की अधिकांश पहाड़ी क्षेत्रों का जल स्तर नीचे जा चुका है, जिनके कारण पेयजल संकट उभरकर सामने आया है और सरकार जल संकट जैसी समस्याओं को नजर अंदाज़ कर रहा है, वास्तव में तीसरी दुनियाँ के देश वैज्ञानिक और तकनीकी रूप से काफी विकसित हो चुका है लेकिन फिर भी जल संकट से उबरने के लिए कोई बेहतर उपाय नहीं निकाल पाया है. जल की कमी एक बहुत ही गंभीर समस्या है. जल संकट से चिंतित होने की नहीं बल्कि इसका निवारण के लिए सोचना चाहिए. वास्तव में भारत जैसे विकासशील देश को सभी वस्तुएँ अधिक मात्रा में चाहिए. शुद्ध जल की अधिकांश मात्रा झीलों और तालाबों में ही उपलब्ध है , वर्षा जल पर अधिकांश जनसंख्या निर्भर है लेकिन वर्षा जल भण्डारण का कोई समुचित उपाय नहीं है जिसके कारण वर्षा जल बहकर समुद्र में चला जाता है. इजरायल में औसतन 15 प्रतिशत बारिश होती है लेकिन वहाँ जल की समस्या विकट नहीं है, क्योंकि इजरायल एक बूंद भी पानी जाया होने नहीं देता है, क्योंकि वहाँ जल प्रबंधन की बेहतर उपाय है.

निष्कर्ष

भारत में वर्षा काफी अधिक मात्रा में होती है लेकिन बारिश का पानी बहकर समुद्र में चला जाता है. सरकार का ध्यान इस और विशेष रूप से निर्दिष्ट होना चाहिए और तालाबों और झीलों में वर्षा जल को सिंचित करना चाहिए, विश्व में 70 प्रतिशत भाग जल से भरा हुआ है लेकिन शुद्ध जल की मात्रा 3 प्रतिशत ही है, इस बात से ही समस्या को पहचान लेनी चाहिए की जल विश्व की सबसे महँगा पदार्थ बन चुका है, अगर जल प्रबंधन को बेहतर ढंग से किया जाये तो जल संकट जैसी समस्या से निजात मिल सकता है. नदियों के जल में अशोधित पदार्थ का बहाव कम करना होगा, वाटर हार्वेस्टिंग व्यवस्था से भू-जल स्तर में बढ़ोतरी किया जा सकता है. तालाबों और झीलों के निर्माण से वर्षा जल का संचयन किया जा सकता है इस तरह भारत में असामयिक जल संकट को आने से रोका जा सकता है.

पवन कुमार दास

पवन कुमार दास द कूटनीति में रिसर्च इंटर्न है! पवन झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध विभाग में एक रिसर्च स्कॉलर भी है | ईमेल - kpawan124@gmail.com

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