भारत-नेपाल नक्शा विवाद में चीन की कूटनीति
भारत और नेपाल के बिच सम्बन्धों की निर्भरता और अविश्वास का एक लम्बा इतिहास रहा है. नेपाल, भारत के लिए सामरिक दृष्टि से चुनौती से भरा हुआ पड़ोसी देश है, एक तरफ जहाँ नेपाल अपनी “बफर स्टेट” होने का भरपूर फायदा उठा रहा है वहीँ भारत, नेपाल की आत्मनिर्भरता को लेकर चिंतित रहता है. भारत का प्रयास हमेशा यही रहा है की पड़ोसी देश आत्मनिर्भर बने. भारत और नेपाल राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से एक दुसरे पर निर्भर है, परस्पर निर्भरता के अलावा दोनों देशों के सम्बन्ध का लम्बा इतिहास रहा है. नेपाल भारत पर हमेशा यह आरोप लगाता है की भारत, दक्षिण एशिया का हितैषी नहीं बल्कि एक शासक बना रहना चाहता है. नेपाल के प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली के फरवरी में पदभार संभालने के बाद उनका पहला विदेश दौरा में उन्होंने कहा था की “मैं भारत के साथ ऐसे किसी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करूँगा जिससे नेपाल के गौरव और प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचे.” एक और जहाँ भारत और नेपाल के रिश्तों में तनाव पैदा हो रहे हैं ऐसे दौर में नेपाल के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री के. पि. ओली के भारत दौरे से रिश्तों में कुछ बदलाव नजर आ रहे थे, भारत और नेपाल दोनों के लिए यह शुभ संकेत था, लेकिन ओली के लिए भारत दौरा जोखिम भरा था क्योंकि ओली भारत को शंका की दृष्टि से हमेशा देखता है, तथा ओली अपने चुनावों में भी भारत बयान देते रहता था. नेपाल और चीन की बढ़ती नजदीकियां भारत और नेपाल दोनों देश के लिए सही नहीं है. नेपाल और चीन की बढ़ती नजदीकियां भारत के लिए चिंता का विषय है. भारत यह कतई नहीं चाहेगा की नेपाल का रुख चीन की तरफ हो, ग़ौरतलब है की नेपाल के साथ भारत के रिश्तों में उतार-चढ़ाव होते रहता है.
नेपाल में चीन की कूटनीति
भारत ने जम्मू-कश्मीर विवाद को सफलता पूर्वक सुलझा लिया है बीते वर्ष अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर को स्पेशल राज्य के दर्जे से हटाकर- कश्मीर और लद्दाख दो नए संघ राज्य क्षेत्र में परिवर्तित कर दिया. ग़ौरतलब है की पाकिस्तान के हितैषी देश चीन को यह बात नहीं भाया, फलस्वरूप नेपाल को उकसाया की भारत से सटे सीमा विवाद को सुलझाना नेपाल की पहली प्रथिमकता होगी. नेपाल ने भी कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधरा को अपने नए नक्शे में शामिल कर सीमा विवाद को हवा दे दिया. नेपाल के सहारे चीन भारत को नियंत्रित करने की कोशिश में हैं. चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के लिए नेपाल को अहम पार्टनर के रूप में देखता है, चीन, दक्षिण एशिया में पाँव पसारने के लिए नेपाल को झाँसे में लेकर अपने निर्यात को बढ़ाने की कोशिश में है. नेपाल भारत से दूर जा रहा है और चीन के करीब, नेपाल अपने लैंडलॉक देश होने का भरपूर फायदा उठा रहा है, कभी भारत के साथ रिश्तों में मधुरता तो कभी चीन के साथ दोस्ताना अंदाज़, लेकिन जहाँ भारत पड़ोसी देशों के विकास को लेकर चिंतित है वहीँ चीन दक्षिण एशिया में अपने सामानों का बाजार बढ़ाने की फ़िराक में है. नेपाल में चीन के बढ़ते निवेश ने नेपाल को चीन का आर्थिक उपनिवेश बना दिया है इसलिए नेपाल चीन के इशारे पर भारत से संबंधों में अलगाव पैदा कर रहा है. भारत को चाहिए की नेपाल की इस संकट से उबारकर उसे वास्तविक स्थिति प्रदान करे.
भारत-नेपाल सम्बन्धों में टकराव
भारत के रक्षा मंत्री माननीय राजनाथ सिंह ने लिपुलेख दर्रे को उतराखंड के धारचूला से जोड़ने वाली सड़क का उदघाटन 8 मई को किया था जिससे कैलाश-मानसरोवर जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिए काफी समय बचेगा. इस सड़क के उद्घाटन के साथ ही नेपाल में आक्रोश उत्पन्न हो गया क्योंकि यह क्षेत्र विवादित है जिसे नेपाल अपना हिस्सा मानता है. भारत और नेपाल 1880 किलोमीटर खुली सीमा साझा करता है दोनों देशों ने लगभग 98 प्रतिशत भाग को अपने नक्शे में शामिल कर लिया है सिर्फ लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधरा बाकि है जो तनाव का विषय बना हुआ है. भारत और नेपाल के बिच सीमा विवाद काफी पुराना है दोनों देशों के बिच 1816 में सुगौली संधि हुआ था जिसके तहत कहा गया था की महाकाली नदी के पूर्व में पड़ने वाली जमीन नेपाल के हिस्से में तथा दक्षिण पूर्व में पड़ने वाली जमीन भारत के हिस्से में रहेगा, यही वजह है की लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधरा भारत के हिस्से में है क्योंकि यह दक्षिण पूर्व में पड़ता है. भारत के उतराखंड और नेपाल के पश्चिम में अवस्थित लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधरा दर्रा तक का पूरा इलाक़ा विवादित है, यह विवाद लम्बे समय से चला आ रहा है. परन्तु भारत 1998 से लगातार इस विवाद को सुलझाने के प्रयास में लगा हुआ है. नेपाल के सर्वे विभाग के पूर्व डायरेक्टर जनरल बुद्धि नारायण श्रेष्ठ ने कहा था की “ हमने 1976 के नक्शे में कालापानी और लिपुलेख को नेपाल का हिस्सा दिखाया था सिर्फ लिम्पियाधरा रह गया था जो नेपाल की एक भूल थी”. 60 सालों से इस क्षेत्र में रहने वाले जनता भारत को वोट और टेक्स देता है परन्तु नेपाल इसे अपना हिस्सा मानकर विवाद को गहराते रहता है. भारत और नेपाल के दोस्ताना सम्बन्धों के कारण यह विवाद नहीं गहराता था, लेकिन नेपाल ने 20 मई को अपने नए नक्शे में विवादित हिस्सों को नेपाल का हिस्सा दिखाया. नेपाल ने नए नक्शे में विवादित हिस्सों को शामिल करने के लिए संविधान संशोधन विधेयक पारित करने की घोषणा कर दिया लेकिन भारतीय कूटनीति के करण तत्काल यह विधेयक संसद में पेश नहीं किया गया है, परन्तु के. पी. ओली की इस महत्वाकांक्षा ने नेपाल को संकट के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है. सर्ववीदित है की चीन की रवैया दक्षिण एशिया में साम्राज्यवादी नीति का है जो नेपाल के लिए भविष्य में घातक साबित होगा. चीन से दूरियाँ बनाना नेपाल की संप्रभुता के लिए अतिअवाश्यक है. एक तरफ जहाँ चीन अपनी बढ़ती जनसंख्या को डायस्पोरा में परिवर्तित करना चाहता है वहीँ नेपाल चीन की राजनीति में फँसता नजर आ रहा है. नेपाल को चीन के जालसाज़ी से निकालना भारत की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए.
नेपाल के राजनीति के जानकारों का कहना है की नेपाल की राजनीति में के. पी. ओली और नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उर्फ़ प्रचंड के बिच सत्ता को लेकर खींचतान बना रहता है, के. पी. ओली अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कट्टर राष्ट्रवाद का सहारा ले रहा है ताकि राष्ट्रवाद का सहारा लेकर ओली लम्बे समय तक नेपाल का प्रधानमंत्री बना रहे इसलिए वह सीमा विवाद का सहारा ले रहा है परन्तु ओली की इस रवैये ने भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों में अलगाव ला दिया है जो भारत और नेपाल दोनों देश के लिए सही नहीं है.
नेपाल में भारत की पहल
भारत और नेपाल के बिच 1950 में पीस एंड फ्रेंडशिप ट्रीटी हुआ था जिसके तहत दोनों देशों के बिच द्विपक्षीय संबंध स्थापित हुआ था परन्तु नेपाल की माओवादी सरकार इस संधि को भारत के हित में मानता है. के. पी. शर्मा ओली इस संधि को अपने चुनावों में भी जिक्र करता है की यह संधि नेपाल के हित में नहीं है. भारत, नेपाल के मधेशी और थारू जनता को नेपाल के संविधान में हक़ दिलाने की माँग करता आ रहा है, भारत, नेपाल को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश में है लेकिन नेपाल का रवैया यह है की वह भारत को संका की दृष्टि से देखता है नेपाल का कहना है की भारत उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है. चीनी मीडिया और पश्चिमी मीडिया भी भारत को दक्षिण एशिया में नकारत्मक दृष्टि से पेश करता है, परन्तु भारत की हमेशा से यह नीति रह है की – पड़ोसी फ़र्स्ट.
नेपाल, भारत से अपनी निर्भरता कम करना चाहता है यही वजह है की वह चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव( बीआरआई) के प्रति अपनी निष्ठा दिखा रहा है, जिसे भारत विरोध करता है. नेपाल चाहता है की वह किसी भी देश के आर्थिक उपनिवेश बनकर न रहे या किसी पर निर्भर न रहे, परन्तु वह चीन की राजनीतिक जाल में फँसता जा रहा है.
भारत, दक्षिण एशिया में एक उभरती हुई महाशक्ति है इसलिए भारत को चाहिए की सबसे पहले वह अपने पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद सुलझा ले, क्योंकि भारत को विश्व स्तर पर विश्वसनीयता तभी प्रदान हो सकता है जब वह अपने पड़ोसियों के साथ सम्बन्धों के बेहतर कर सके. भारत और नेपाल के बिच द्विपक्षीय वार्ता से सीमा विवाद को साझा करे इससे भारत को दक्षिण एशिया में मज़बूती मिलेगा. भारत एक क्षेत्रीय शक्ति से विश्व शक्ति की अग्रसर हो रहा है इसलिए पड़ोसियों के साथ सम्बन्धों में मधुरता से भारत की छवि विश्व स्तर पर मज़बूती लायेगा तथा विश्व को एहसास होगा की भारत, दक्षिण एशिया में एक विश्वसनीय देश है जो क्षेत्रीय विवादों को अनदेखी नहीं करता है और विवादों को सुलझाने का प्रयत्न करता है.