अफगानिस्तान में तालिबान की जीत ने पाकिस्तान-चीन संबंधों को उलझा दिया

राजनेताओं से लेकर क्रिकेटरों से लेकर इस्लामवादियों तक, पाकिस्तान, अफगानिस्तान पर तालिबान द्वारा किए गए अधिग्रहण का जश्न मना रहा है। लेकिन इस्लामाबाद का सदाबहार सहयोगी बीजिंग युद्धग्रस्त देश में अपनी बहु-अरब डॉलर की बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) परियोजनाओं का विस्तार करने के लिए काबुल तक पहुंच बनाने के लिए अपनी ताकत बढ़ा रहा है।

हारेत्ज़ में लिखते हुए कुंवर खुल्दुने शाहिद ने कहा कि पाकिस्तान को उम्मीद हो सकती है कि तालिबानी अधिग्रहण और युद्ध की तैयारी का प्रभाव, जिसे वह भड़काने की इच्छा रखता है, इससे उसे चीनी मोर्चे पर बेहतर शर्तों पर बातचीत के लिए कुछ राहत मिलेगी। लेकिन तालिबान और अफगानिस्तान तक पहुंच का दावा करने के लिए पाकिस्तान के सभी उत्तेजित प्रयासों के बावजूद, वह बीजिंग के आर्थिक आकर्षण का मुकाबला नहीं कर सकता, जिस पर नए काबुल शासन का अस्तित्व निर्भर है।

चीन अपनी बहु-अरब डॉलर की बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) परियोजनाओं को देश में विस्तारित करने का अवसर देख रहा है।

चीन ने शुक्रवार को कहा कि तालिबानी नेता बीआरआई का समर्थन करते हैं और मानते हैं कि परियोजनाएं युद्धग्रस्त देश में विकास और समृद्धि के लिए अच्छी हैं।

इस बीच तालिबान ने चीन को अपना सबसे महत्वपूर्ण साझेदार बताते हुए कहा कि बीजिंग निवेश और देश के पुनर्निर्माण के लिए तैयार है।

बहरहाल, पाकिस्तान अफगानिस्तान में तालिबान की जीत को अपनी जीत बता रहा है। शाहिद ने कहा कि पाकिस्तानियों ने वैचारिक और राजनीतिक विभाजन के दौरान भी तालिबान के अधिग्रहण को आनंदोत्सव माना है।

कुछ इस्लामवादी इस्लामी शासन की वापसी की प्रशंसा कर रहे हैं। उनका जन समूह अफगान इस्लामवादियों के दृष्टिकोण में कहां उपस्थित है, ‘उदारवादी’ इस बात का परिक्षण करने के लिए अधपके व्यंग्य का उपयोग करते हैं, “तालिबान की तरह शक्तिशाली बनने के लिए पाकिस्तानी महिलाओं को भी हिजाब पहनना चाहिए!” क्रिकेट के खिलाड़ियों, वरिष्ठ महिला न्यायाधीशों और यहां तक ​​कि कुछ महिला स्कूलों और संगठनों द्वारा भी तालिबान का मुखर समर्थन किया जा रहा है।

सीमा पार शांत रहने के लिए मजबूर की गईं शिक्षित महिलाओं, पत्रकारों और सांस्कृतिक हस्तियों का कहना है कि ‘उनकी जीत, हमारी जीत है,’ हारेत्ज़ ने बताया।

इसके अलावा, पाकिस्तान का आख्यान- कि पश्चिम को तालिबान तक पहुंचने और उसे प्रभावित करने की आवश्यकता है- अतिरिक्त प्रेरक शक्ति को प्रदर्शित करता है। इस्लामाबाद साथ ही साथ अफगानिस्तान में पाकिस्तान की प्रधानता को स्वीकार करने के लिए पश्चिमी शक्तियों को धमकी दे रहा है, या कम से कम अपनी सर्वशक्तिमान सेना के द्वारा संभावित रूप से अशांत परमाणु सशस्त्र राज्य के रूप में अपनी स्थिति का हवाला देकर धमकाने का प्रयास कर रहा है।

तालिबान के अधिग्रहण के बाद से पाकिस्तान ने जो ध्यान आकर्षित किया है, उसको वह उत्सुकता से प्रचारित कर रहा है। वह यह केवल अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का ध्यान आकर्षित करने के लिए नहीं कर रहा है। हारेत्ज़ में बताया गया कि यह खाड़ी शासकों के लिए एक संदेश के रूप में अभिप्रेत है, जिनकी मध्य पूर्व के लिए योजनाएँ, और विशेष रूप से इज़राइल के साथ संबंधों की औपचारिकता, काबुल में घट रही घटनाओं से दुष्प्रभावित हो सकती है, यदि पाकिस्तान कम से कम अरब राज्यों द्वारा अतीत की मुख्यधारा में विद्यमान यहूदी विरोधी साजिश को अख्तियार कर लेता, जो अब यहूदी राज्य को मान्यता देने के लिए कतार में हैं।

इस्लामाबाद का अपने महत्व का प्रसारण चीन के प्रति एक कमजोर आवाज़ हो सकती है, जिसने पाकिस्तान पर आर्थिक नियंत्रण पर जोर दिया है, लेकिन हाल ही में पाकिस्तान के भीतर से जिहादी खतरे की दर्दनाक याद, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी), जो बीजिंग की बहुप्रचारित बेल्ट एंड रोड पहल की रीढ़ की हड्डी है, पर मंडरा रहा है।

शाहिद ने कहा कि अमेरिका की वापसी ने चीन को जिहादी शासन से निपटने के लिए छोड़ दिया, जो लाखों के शस्त्रागार से लैस है, पाकिस्तान बीजिंग के खिलाफ उसी तरह खूनी संघर्ष करेगा जिस तरह से उसने वाशिंगटन पर किया था।

अनुवाद: संयम जैन

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