चूखा जलविधुत परियोजना के सन्दर्भ में भारत-भूटान सम्बन्ध

चूखा जलविधुत परियोजना/ फोटो: एनर्जेटीका

दक्षिण एशिया के एक छोटे और बहुत ही ख़ूबसूरत देश भूटान, भारत और चीन के बीच बफर स्टेट (मृदु राज्य) के रूप में अवस्थित है, सामरिक दृष्टि से भूटान, भारत और चीन दोनों के लिए महत्वपूर्ण है परन्तु एक तरफ जहाँ चीन साम्राज्यवादी नीति के पक्षधर है वहीँ भारत सहयोग और लोकतंत्र के पक्षधर है. भूटान अपने ग्रास नेशनल हैप्पीनेस के लिए विश्व प्रसिद्ध है इसलिए जो देश शांति और सहयोग की नीति में विश्वास रखता हो वह चीन जैसे आक्रामक देश के साथ सम्बन्ध नहीं रखना चाहेगा, यही कारण है की भूटान, भारत के साथ सहयोग की नीति रखता है भारत विश्व शांति के पक्षधर है जो युद्ध में तनिक भी विश्वास नहीं रखता है. स्वाभाविक है जिस देश का आधार ही “वसुधेव कुटुम्बकम” और “विश्व शान्ति” की कल्पना हो वह युद्ध जैसे परिणामों से कौसों दूर रहता होगा. भारत विश्व में शांति प्रस्ताव के लिए जाने जाते हैं इसलिए भारत दक्षिण एशिया को एक सूत्र में पिरोने का प्रयास कर रहा है ताकि सभी देश आपस में सहयोग करके आपसी समस्याओं को सुलझा सके. दक्षिण एशिया के सभी देश विकासशील देश है जिसके कारण आंतरिक समस्याएं भी बहुत अधिक है. दक्षिण एशिया में बेरोज़गारी, गरीबी, अशिक्षा तथा आतंकवाद प्रभावी है जिसे तभी ख़त्म किया जा सकता है जब सभी देश इनसे लड़ने के लिए आपस में सहयोग करेगा. भारत ने आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए अपने पड़ोसी देशों के साथ कई संयुक्त परियोजनाओं का विकास किया है. भारत ने दक्षिण एशिया के छोटे से देश भूटान को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जल विधुत परियोजना का विकास कर रहा है जिससे दोनों देश लाभान्वित हो रहा है. भूटान जल विधुत परियोजना से खुद को आत्मनिर्भर बना रहा है और भारत को बिजली आपूर्ति भी कर रहा है. भूटान के पास जल की अधिकता है जिसे वह जल विधुत परियोजना में निवेश कर सकल घरेलु उत्पाद में योगदान दे रहा है और भारत, भूटान के इस कार्य में भरपूर योगदान दे रहा है.

भारत और भूटान के बीच सम्बन्धों की शुरुआत 1968 में भारत के रेजिडेंट प्रतिनिधि की नियुक्ति थिम्पू में होने के साथ हुआ था, इससे पहले सम्बन्धों की देखरेख सिक्किम के राजनीतिक अधिकारियों के साथ होता था, दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सम्बन्धों की आधारशिला 1949 में रखा गया था जिसे फरवरी 2007 में भूटान के नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक के भारत दौरे के दौरान अपडेट किया गया था. 1949 के मैत्री समझौते के अनुसार अगर भूटान किसी भी देश के साथ राजनीतिक, आर्थिक तथा सुरक्षा समझौता करता है तो उन्हें भारत को सीधे तौर पर शामिल या बताना होगा इस समझौते को भूटान अपनी “संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता” में संका की दृष्टि से देखता था, 1949 के समझौते को भूटान अपने स्वतंत्रता के लिए खतरा समझता था, भूटान को लगता था की भारत के बिना भूटान कोई भी समझौता नहीं कर सकता है इसलिए 2007 में 1949 के समझौता में संशोधन किया गया और प्रावधान किया गया की अब भूटान उसी समझौते में भारत को शामिल करेगा जो भारत के आंतरिक या बाह्य मामलों से जुड़ा होगा, इस तरह समय-समय पर भारत और भूटान के बीच मैत्री सम्बन्ध प्रगाढ़ होता गया. भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के 2014 दौरे के दौरान प्रधानमंत्री ने 600 मेगावाट के खोलोंगछू जल विधुत परियोजना की नींव रखा था जिसका अभी हाल ही में श्री नरेन्द्र मोदी ने उदघाटन किया.

भारत और चीन के बीच भूटान बफर स्टेट (मृदु राज्य) होने के कारण चीन, भूटान को सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानता है इसलिए चीन भूटान में अपनी गतविधि तेज रखता है अभी हाल ही में डोकलाम विवाद को तुल देकर यह साबित करना चाहा की साऊथ एशिया में शक्ति संतुलन चीन के पक्ष में है परन्तु भारत ने डोकलाम विवाद को कूटनीतिक रूप से सुलझा दिया, परन्तु भारत के लिए भूटान से चीन को दूर रखना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि चीन की नजर सिलिगुड़ी की चुम्बी घाटी पर है जो शेष भारत को उत्तर पूर्वी भारत से जोड़ता है. भारत के लिए चुम्बी घाटी “चिकेन नेक” है जो नार्थ-ईस्ट इंडिया के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, चीन अगर चुम्बी घाटी पर कब्ज़ा कर लेता है तो वह आसानी से नार्थ-ईस्ट इंडिया को भारत से अलग कर सकता है डोकलाम चुम्बी घाटी के सीमावर्ती क्षेत्र है इसलिए चीन डोकलाम विवाद को हवा देते रहता है. चीन की साम्राज्यवादी नीति दक्षिण एशिया के विकास के लिए घातक है, चीन सीमा विवाद में उलझाकर साउथ एशिया के देशों को आर्थिक रूप से पिछड़ा बनाना चाहता है इसलिए चीन का नजर भूटान पर है क्योंकि भारत द्वारा भूटान में जल विधुत परियोजना का विकास कर भूटान की अर्थव्यवस्था को नई दिशा प्रदान कर रहा है. भूटान के जीडीपी में जलविधुत परियोजना महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रहा है. भारत और भूटान संबंधों के बीच रिश्तों की गहराई को और भी अधिक ठोस बनाना होगा क्योंकि वर्तमान समय में तो भूटान की तरफ से भारत को कोई खतरा नहीं है लेकिन जिस तरह से चीन भूटान पर अपनी पैनी नजर बनाये हुए हैं इस लिहाज से भारत को भूटान में जलविधुत परियोजना और पर्यटन में और अधिक निवेश करने की जरुरत है क्योंकि चीन की नजर भूटान की टूरिज़्म पर है. भूटान अपनी सॉफ्ट पॉवर पॉलिसी का प्रयोग करते हुए अधिक से अधिक सैलानियों को भूटान भेज रहा है ताकि भूटान के साथ आर्थिक संबंधों की नीति में प्रवेश किया जाये. भूटान में पर्यटन दूसरा सबसे बड़ा आर्थिक स्रोत है इसलिए चीन की नजर भूटान के टूरिज़्म पर है जिससे चीन भूटान के साथ रिश्तों में सुधार करके भूटान में अपना पाँव पसारना चाह रहा है इसलिए चीन की इस नीति का भी भारत को ध्यान रखना पड़ेगा.

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भूटान के प्रधानमंत्री लोते शेरिंग के साथ/ फोटो:द हिन्दू

जल विधुत सहयोग

भूटान नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक का कहना है की भूटान को जल विधुत परियोजना प्रकृति प्रदत मिला है जिसका भूटान को भरपूर फायदा लेना चाहिए. भूटान के नरेश आगे कहते हैं की भारत, भूटान का चिरकालिक दोस्त है जो हमेशा भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करता है इसलिए भारत के इस सराहनीय कार्य में भूटान को सहयोग करना चाहिए. भारत और भूटान के बीच जलविधुत परियोजना एक स्तम्भ का कार्य करता है जो दोनों देशों के आर्थिक विकास के लिए लाभदायक है इसलिए दोनों देशों को एक साथ मिलकर जलविधुत परियोजना में सहयोग करना चाहिए. भारत ने प्रारंभ में भूटान में तीन जलविधुत परियोजना की नींव रखा था जिसमें चूखा जल विधुत परियोजना (336 मेगावाट), कुरीचू जल विधुत परियोजना (60 मेगावाट) तथा ताला जल विधुत परियोजना (1020 मेगावाट) है  इस तरह कुल 1416 मेगावाट की तीन जलविधुत परियोजना द्वारा वर्तमान में बिजली उत्पादन किया जा रहा है. इन तीनों परियोजनाओं के सफल होने के पश्चात भारत ने वर्ष 2008 में दोनों देशों के सरकारों की सहमति से 2020 तक 10000 मेगावाट की जलविधुत उत्पादन करने की प्रतिबद्धता जाहिर किया, इन परियोजनाओं के सफलता के पश्चात भारत ने भूटान में 10 और जलविधुत परियोजना के विकास करने के लिए भूटान सरकार से सहमति प्राप्त कर लिया है. जिसमें तीन जलविधुत परियोजना पर विकास कार्य चल रहा है इन परियोजनाओं की कुल क्षमता 2940 मेगावाट है जिसमें पुनातसांग्चू-1 जलविधुत परियोजना (1200 मेगावाट), पुनातसांग्चू-2 जलविधुत परियोजना (1020 मेगावाट) तथा मांगदेचू जलविधुत परियोजना (720 मेगावाट) है जिसे भारत सरकार ने 2017-18 में शुरू कर दिया है. शेष सात जल विधुत परियोजना में से 2120 मेगावाट बिजली उत्पादन का प्रस्ताव रखा गया है जिसमें खोलोंगचू परियोजना (600 मेगावाट), बुनाखा परियोजना (180 मेगावाट), वांगचू परियोजना (570 मेगावाट) तथा चमकारचू परियोजना (770 मेगावाट) है.

भूटान की अर्थव्यवस्था तथा जीडीपी के लिए जल विधुत परियोजना महत्वपूर्ण स्थान रखता है. भूटान के जीडीपी में जल विधुत परियोजना का योगदान 12 प्रतिशत है. भूटान के जल विधुत उत्पादन पर नियंत्रण ड्रक ग्रीन पावर कॉरपोरेशन रखता है जो भूटान का सबसे बड़ा करदाता है. भूटान के कुल विदेशी निर्यात में जलविधुत परियोजना का योगदान 32 प्रतिशत है भारत और भूटान के बीच व्यापार सम्बन्धी पहला समझौता पर हस्ताक्षर 1972 में हुआ था दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार सम्बन्ध स्थापित होने से भूटान के विकास में गति प्रदान हुआ, इस समझौते को भूटान ने भारत से मिलकर 2006 और 2016 में इस समझौते में संशोधन किया. भारत, भूटान का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार देश है, भूटान भारत से ही अधिकांश वस्तुओं का निर्यात करता है.

फोटो: एन ई लाइव

चूखा जल विधुत परियोजना

भारत और भूटान के बीच जलविधुत उत्पादन करने का पहला समझौता 1961 में हुआ था जिसमें कहा गया था की जालधका नदी से जल विधुत परियोजना की शुरुआत किया जायेगा, परन्तु भूटान के साथ जल विधुत परियोजना की वास्तविक शुरुआत चूखा परियोजना से हुआ जब भारत और भूटान ने 1974 में जल विधुत परियोजना संधि पर हस्ताक्षर किया और यह प्रावधान किया गया की भारत, भूटान के चूखा जिले के वांगचू नदी पर चूखा जल विधुत परियोजना का निर्माण करेगा. चूखा जल विधुत परियोजना का निर्माण कार्य 1970 से प्रारंभ हुआ था, यह परियोजना भूटान का पहला जल विधुत परियोजना है इस तरह भारत और भूटान के बीच जल सहयोग की दिशा और पहला कदम बढ़ा जिससे 1987 में चूखा जल विधुत परियोजना की शुरुआत हुई. चूखा जल विधुत परियोजना को भारत ने 40 प्रतिशत ऋण तथा 60 प्रतिशत के अनुदान पर शुरू किया था जिसमें ऋण के रुप में 5 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर पर 15 साल के लिए भूटान को दिया इस परियोजना का अनुमानित खर्च 246 करोड़ हुआ था, चुखा जल विधुत परियोजना का शुरुआत 83 करोड़ के साथ हुआ था. चूखा जलविधुत परियोजना का रखरखाव भूटान के ड्रकग्रीन पॉवर कॉरपोरेशन (डीजीपीसी) के नियंत्रण में है. चूखा जलविधुत परियोजना को भूटान ने पुर्णतः अपने नियंत्रण में 1991 में ले लिया था. भूटान के बिजली का पूर्णतः ख़रीदार भारत ही है इसलिए भारत, भूटान के जलविधुत परियोजना में अपना निवेश करना लाभदायक समझता है. शुरुआती समय में चूखा जलविधुत परियोजना से 90 प्रतिशत बिजली भारत को बेचने का लक्ष्य रखा गया था परन्तु 2005 में इसे घटाकर 80 प्रतिशत रखा गया, इस तरह भारत और भूटान के संबंधों की प्रगाढ़ता बढ़ती ही जा रहा है जिसे भूटान को भरपूर लाभ हो रहा है.

निष्कर्ष

भारत और भूटान के बीच रिश्तों में मधुरता मैत्री सहयोग के कारण है जिसमें मुख्य भूमिका आर्थिक सहयोग का है. भारत और भूटान के बीच आर्थिक सहयोग का मुख्य स्रोत जल विधुत परियोजना है. भारत का हमेशा से यही लक्ष्य रहा है की पड़ोसी देश आत्मनिर्भर बने इसी दिशा की और भारत ने भूटान को पूर्णतः आत्मनिर्भर बनाना चाहता है. भूटान भी अपने 12वीं पंचवर्षीय योजना का मुख्य लक्ष्य यह निर्धारित किया है की विदेशी सहायता प्राप्त करने की  यह अंतिम योजना होगा. भूटान में जल की प्रचुरता उन्हें प्रकृति से प्राप्त हुआ है जिसका भरपूर फायदा जलविधुत परियोजना के रूप में मिल रहा है. भूटान में जलविधुत परियोजना के विकास में भारत भरपूर सहायता प्रदान कर रहा है भारत ने चूखा जल विधुत परियोजना के निर्माण के लिए विदेशी तकनीक और संयंत्रों को विकसित करने में भरपूर सहायता प्रदान किया था. भारत, भूटान को कम विकसित देश की श्रेणी से बाहर निकालकर पुर्णतः आत्मनिर्भर बनाना चाहता है, भारत, भूटान से बिजली की उत्पादन क्षमता 5000 मेगावाट से बढ़ाकर 10000 मेगावाट करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. भूटान की अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी चिंता जलविधुत परियोजना का बढ़ता कर्ज है जो भारत और भूटान दोनों देशों के लिए चिंता का विषय है. कारण यह है की भूटान जलविधुत परियोजना के बढ़ते कर्ज को पर्यटन के माध्यम से कम करना चाहता है. भूटान अपने सकल घरेलू उत्पाद में टूरिज़्म के हिस्से को बढ़ाना चाहता है जिसका भरपूर फायदा चीन उठाना चाहता है. भूटान में चीन के यात्रियों की बढ़ती संख्या भारत के लिए चिंता का विषय है. भूटान में चीन की यात्रियों की बढती संख्या से दोनों देशों के जनता के बीच सकारात्मक रिश्ते पनपेंगे. जलविधुत परियोजना के बाद भूटान के आर्थिक सहयोग का सबसे बड़ा स्रोत पर्यटन है. भूटान टूरिज़्म के क्षेत्र को बढ़ाने की दिशा में सकारात्मक कार्य कर रहा है जो भारत के लिए चिंता का विषय है. भारत को भूटान में जलविधुत परियोजना और पर्यटन दोनों में निवेश करने की जरुरत है ताकि दोनों देशों के रिश्तों में मधुरता बना रहे.

पवन कुमार दास

पवन कुमार दास द कूटनीति में रिसर्च इंटर्न है! पवन झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध विभाग में एक रिसर्च स्कॉलर भी है | ईमेल - kpawan124@gmail.com

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